आज की भागमभाग में हम उस ज़िन्दगी से बहुत दूर निकल आए है, जिसे कभी हमने भरपूर जिया होता है, हर लम्हे को पास से छू कर देखा होता है, शोर के साथ अपनी आवाज़ मिलाकर दिल के तार छेड़े होते है, खामोशियों के साथ अपनी अलग ही कोडिंग की होती है ।।
हवा के झोंके के साथ बहना सीखा होता है, कड़ी धूप में भी अपनी मस्ती के साथ छांव का अहसास किया होता है, रात भर आखों से गुम हुई नींद को छत पर बैठकर तारों से बातें करते हुए आवाज़ लगाई होती है...हर पल को कुछ इस तरह से जिया होता है जैसे वो हमारी ज़िन्दगी का आखिरी पल हो।।
लेकिन कहते है ना " जब सिर पर जिम्मेदारियां बढ़ जाती है तो ख्वाहिशें खुदकुशी कर लेती है " बस कुछ यही होता है जब ज़िन्दगी अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रही होती है और हम उसी रफ्तार से पीछे छूट रहे होते है...पर फिर भी कभी कभी उस पीछे छूटी ज़िन्दगी को दिल बिल्कुल वैसे ही दुबारा अपनी मुट्ठी में दबाना चाहता है जैसे वो अपनी मां का दिया हुए एक रुपए का सिक्का ये समझ कर दबा लेता है कि ये सिर्फ उसका है और इसपर सिर्फ उसका हक है...फिर कितनी कोशिश करनी होती है उसे समझने के लिए "देखिए":-
बहुत समझाया मैने ख्वाहिशों को फिर भी मुंह उठाए चली आती है। वो ज़िन्दगी रहती ही नहीं अब उस पते पर , आकर वो जिसकी door bell बजाती है ।। समझती नहीं वो की समझदारी आते ही , मासूमियत अपनी seat छोड़े जाती है , लफ्ज़ जब तक समझ आते है ठीक से , तब तक बातें बेअसर हो जाती है। समझती ही नहीं वो की अब वो सुकून भरी रात कहां आती है, जब तक उस लम्हें तक पहुंचते है हम, तब तक ज़िन्दगी दुबारा रफ्तार भरे जाती है। बहुत समझाया मैने ख्वाहिशों को फिर भी मुंह उठाए चली आती हैं, वो ज़िंदगी रहती ही नहीं अब उस पते पर, आकर वो जिसकी door bell बजाती है।। समझती नहीं वो की सर्दियों की वो गरम धूप अब मेरी ठिठुरन और बढ़ाती है,
जब तक ज़िम्मेदारियों से फरिक़ होते है हम, तब तक वो भी अपने घर लौट जाती है। कैसे समझाऊं इसे की ये बारिश मेरे कपड़ों की बजाए , अब मेरी रूह को भिगोती है , नहीं समझती वो की ज़िन्दगी अब एक साबुन सी हो गई है जितना जीने कि कोशिश करो उतना घिसती जाती है। आती है अब भी वो पुरानी यादें , और मेरे कंधे पर सिर रखकर अपना मन हल्का किए जाती है, जो कुछ छूट गया है पीछे उन सब की list मुझे थमा जाती है कैसे समझाऊं उसे की इन सब बातों को दिल पर ना ले, ये ज़िन्दगी है उन्ही ही कट जाती है, कभी हम ख्वाहिशों को छोड़ देते है और कभी ख्वाहिशें हमें छोड़ जाती है। बहुत समझाया मैने ख्वाहिशों को फिर भी मुंह उठाए चली आती हैं, वो ज़िंदगी रहती ही नहीं अब उस पते पर, आकर वो जिसकी door bell बजाती है ।।
Another one for you friends...
जवाब देंहटाएंIf you like"ख्वाहिशें" plzzz share and comment also with your name..
Beautifully described...
जवाब देंहटाएंThankyou Mr. Dixit for your appriciation.
हटाएंHeart touching line lots of feeling involved keep it up
जवाब देंहटाएंThank you so much for your valuable comment.
हटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंWht a realistic thoughts... keep it up
जवाब देंहटाएंNice lines pooja....
जवाब देंहटाएंThank you Prashant for your valuable comments.
जवाब देंहटाएंBeautiful lines..appreciate it
जवाब देंहटाएंThank you for appriciation.
हटाएंWoowwww wonderful Lines..
जवाब देंहटाएंThanks for your valuable comments Dheeraj
हटाएंI am glad to finally see your comment.
Very nice
जवाब देंहटाएंThank you ji
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