हैलो फ्रेंड्स...आज आपके लिए हम लेकर आए है सब्र की वो परिभाषा जो बचपन से सिखाई गई परिभाषा से बिल्कुल अलग है, बहुत कोशिश की जाती है बचपन से ही की हम थोड़े में जीना सीख जाए, अपने आपको को परिस्थितियों के हवाले कर दे, ये सिख जाए की जितनी चादर हो उतने ही पर फैलाने चाहिए।
लेकिन बचपन का भी एक उसूल होता है, कि उस समय हमें जिस भी चीज के लिए मना किया जाए हमें वही करने में मज़ा आता है। अगर ये कहा गया है कि थोड़े में सब्र करो तो फिर हमें ज्यादा ही चाहिए होता है।
लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होते जाते है जिंदगी कुछ और ही तय कर लेती है हमारे लिए,
वरना...
"जिस नज़ाकत से लहरें पैरों को छूती है
यकीन नहीं होता इन्होंने कश्तियां डूबाई होंगी।।"
जी हां, ज़िन्दगी में कुछ वाकया ऐसे ही होते है जिनपर यकीन करना बहुत मुश्किल होता है। कभी कभी ज़िन्दगी के थपेड़े हमें बहुत अंदर तक झकझोर देते है जितना कभी हमारी मम्मी के थपड़ो ने नहीं किया होता ।😀
कुछ चीजें चाहे ना चाहे ऐसी हो जाती है जिससे हम बदलने लगते है।। हालांकि शुरुआत में इस बदलाव का हमें अहसास तक नहीं होता, और फिर धीरे धीरे हम उन रास्तों को भी पार कर जाते है जो हमारी हदों में नहीं होते ।। इसी बीच कभी गलती से महसूस हो जाता है कि दिल बार बार समझाने कि कोशिश करता है लेकिन दिमाग़ उसकी एक नहीं सुनता और फिर जब दिल थक हार कर घुटने टेक देता है तब शुरू होता है एक ऐसा सफ़र जिसपर मिलता तो बहुत कम है लेकिन छूट बहुत कुछ जाता है ,,हमारी आदतें, मुस्कुराहटें, ज़िंदादिली, चीज़ो
को देखने का सकारात्मक नजरिया, भावनाएं, सब कुछ धीरे धीरे पीछे छूट जाता है और मिलता क्या है:- नकारात्मकता, और सब्र।।
ना ना आप इस सब्र को समझने में गलती कर रहे है... ये वो सब्र नहीं जो हम खुद कर लेते है , जनाब " ये तो वो सब्र है जो हमें अपने आप आ जाता है।"
वो कहते है ना कि सब्र करने में और सब्र आ जाने में बहुत फ़र्क होता है।
इस परिस्थिति को समझाने के लिए एक छोटी सी कोशिश:-
आज कल रात भर इन पलकों पर नींद लिए जगने लगी हूं मैं,
सपनों को रख कर सिरहाने अब करवटें बदलने लगी हूं मैं,
हां ,जो कभी ना करना था मुझे ...ना जाने क्यों अब करने लगी हूं मैं ।।
आज कल अपने आप को छुपा कर रखने लगी हूं मैं,
कोई पढ़ ना ले इन आंखो को मेरी, अब डरने लगी हूं मैं,
ख्वाहिशों को करके बेसहारा अब अकेले ही जीने लगी हूं मैं,
हां ,जो कभी ना करना था मुझे....ना जाने क्यों अब करने लगी हूं मैं।।
खामोशियों की कड़ी अब जोड़ने लगी हूं मैं,
बनाकर सुंदर महल रेत पर, अब खुद ही मिटाने लगी हूं मैं,
कभी फरियाद होती की कोई टूटे तारा तो कुछ मांग लूं ,
लेकिन अब टूटे तारे से मुंह मोड़ने लगी हूं मैं,
हां , जो कभी ना करना था मुझे...ना जाने क्यों अब करने लगी हूं मैं।।
बीच समुंदर फंसी कश्तियां किनारे ना ही आए तो बेहतर है,
क्योंकि अब किनारों पर भी डूबने लगी हूं मैं,
ये सर्द हवाएं ले ना आए कुछ पुरानी यादें , तो खिड़कियों के परदे ठीक करने लगी हूं मैं,
हां ,जो कभी ना करना था मुझे.... ना जाने क्यों अब करने लगी हूं मैं।।
Dil ko chu gayi jiwan ki sachai... Keep going... God bless you
जवाब देंहटाएं👌🏻👌🏻🙏🏻
जवाब देंहटाएंLazwab 👌👌👌
जवाब देंहटाएंBht sundar lines
जवाब देंहटाएंBht sundar lines
जवाब देंहटाएंBeautiful
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