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शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

अब थकती नहीं हूं मैं

 हैलो फ्रेंड्स ....पोस्ट पढ़ लो 🤗🤗
बहुत बार मैंने लोगो को इस मुद्दे पर बहस करते हुए देखा है *" कि शादी के बाद कुछ बदलता है या नहीं"* ?
हालांकि मैं उस बहस का हिस्सा नहीं बनना चाहती लेकिन मैं ये ज़रूर कहना चाहूंगी की किसी के लिए कुछ बदले ना बदले लेकिन उस लड़की के लिए बहुत कुछ बदल जाता है जो अपना घर,परिवार, मां- बाप, सखी सहेलियां और अपने बचपन को हमेशा के लिए छोड़ कर अपने ससुराल आ जाती है, तो फिर इस कविता के माध्यम से देखिए कि उसकी ज़िन्दगी में कैसे कैसे बदलाव होते है:-
पहले की तरह अब बेवजह हंसती नहीं हूं मैं,
उलझे हुए बालों की गांठों में , अब फंसती नहीं हूं मैं,
देख कर शीशे में खुद को अजीब से मुंह, अब बनाती नहीं हूं मैं,
धीरे धीरे होते होते अब पूरी मशीन हो गई हूं मां,
यकीन करो मेरा, अब थकती नहीं हूं मैं।।
पहले की तरह अब आलू के परांठे बनाने में हिचकती नहीं हूं मैं,
तवे से जल जाए अगर हाथ मेरा कभी तो, अब रोती नहीं हूं मैं,
आ जाए अगर कभी बारिश तेज़ तो, अब जमकर भीगती नहीं हूं मैं,
धीरे धीरे होते होते अब पूरी मशीन हो गई हूं मां,
यकीन करो मेरा, अब थकती नहीं हूं मैं।।
पहले की तरह नई चीज़ देखकर अब चहकती नहीं हूं मैं,
अगर ले ले कोई मेरे हिस्से का, तो भी अब रूठती नहीं हूं मैं,
अगर ना हो ice Cream मेरी पसंद की, तो भी चला लेती हूं मैं,
धीरे धीरे होते होते अब पूरी मशीन हो गई हूं मां,
यकीन करो मेरा, अब थकती नहीं हूं मैं।।
पहले की तरह देख कर खूबसूरत चांद को, अब खोती नहीं हूं मैं,
रात से डरे हुए ज़माना हो गया, अब कई कई रातें सोती नहीं हूं मैं,
अगर ना आए कोई बात पसंद तो भी "हां" में सिर झुका देती हूं मैं,
धीरे धीरे होते होते अब पूरी मशीन हो गई हूं मां,
यकीन करो मेरा, अब थकती नहीं हूं मैं।।
बच्चो के साथ अब बच्चा बनकर खेलती नहीं हूं मैं,
देख बाजारों में वो खूबसूरत गुड़िया, अब ठहरती नहीं हूं मैं,
ज़िन्दगी बहुत आगे ले आई है, अब पीछे मुड़कर देखती नहीं हूं मैं,
धीरे धीरे होते होते अब पूरी मशीन हो गई हूं मां,
यकीन करो मेरा अब थकती नहीं हूं मैं।।
पहले की तरह दिल दुखाए कोई मेरा, तो उसे अब कुछ कहती नहीं हूं मैं,
ज़ोर से बोल दे अब अगर कोई तो, सहमती नहीं हूं मैं,
अब उस 6 मीटर की साड़ी में उलझती नहीं हूं मैं,
धीरे धीरे होते होते अब पूरी मशीन हो गई हूं मां,
यकीन करो मेरा अब थकती नहीं हूं मैं।।
पहले की तरह हर एक पर विश्वास करती नहीं हूं मैं,
लेकिन खेलना चाहे कोई मेरी भावनाओं से तो उसे माफ़ करती नहीं हूं मैं,
तुमने जो सबक सिखाए ज़िन्दगी के, उन्हें भूलती नहीं हूं मैं,
धीरे धीरे होते होते अब पूरी मशीन हो गई हूं मां,
यकीन करो मेरा, अब थकती नहीं हूं मैं।।
तेरा वो निस्वार्थ प्यार, कभी भूलती नहीं हूं मैं,
देख मेले में वो बचपन वाले झूले, अब झूलती नहीं हूं मैं,
अब बड़ी हो गई हूं , इसलिए कभी अब बचपन को ढूंढती नहीं हूं मैं,
धीरे धीरे होते होते अब पूरी मशीन हो गई हूं मां,
यकीन करो मेरा, अब थकती नहीं हूं मैं।।
पहले की तरह चलते हुए अब लड़खड़ाती नहीं हूं मैं,
बिना सोचे समझे कोई कदम, अब बढ़ाती नहीं हूं मैं,
ज़िन्दगी की जो सीख तुमने दी, उसके परे अब जाती नहीं हूं मैं,
धीरे धीरे होते होते अब पूरी मशीन हो गई हूं मां,
यकीन करो मेरा, अब थकती नहीं हूं मैं।।


15 टिप्‍पणियां:

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