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सोमवार, 9 नवंबर 2020

रंगदारी

हैलो दोस्तों, आज मैं आपकी होस्ट और दोस्त आपके लिए लेकर आया हूं कुछ जिंदगी से जुड़ा हुआ, कुछ उन पलों से जुड़ा हुआ जब हम अचानक से बड़े हो जाते है और महसूस करते है कि जो दिखता है अक्सर उसके उल्ट होता है। वो बचपन में परिवार, पड़ोसियों और रिश्तेदारों से सीखी हुई रिश्तों की A, B, C, D अचानक से हम भूलने लगते है। ऐसा लगता है मानो जो जिंदगी हमनें पहले जी है वो अब वाली जिंदगी से तो मेल ही नहीं खाती। तो क्या को पहले सीखा वो सब बेबुनियादी था?
क्यों उस वक्त किसी ने ये नहीं सिखाया कि आगे की जिंदगी सिर्फ और सिर्फ समझोतो से भरी है।

दोस्तों कभी कभी हम ज़िन्दगी के उस मोड़ पर होते है, जहां ठहरना कुछ ज़रूरी सा हो जाता है और उस वक्त हमारे पास ये मौका होता है जब हम अपनी आंखों पर बंधी पट्टियां उतार सकते है, अपने आपको  झूठी तसल्लीयों की जो घुट्टी पिलाई होती है, उनकी उल्टियां कर सकते है, दूसरों की अच्छाइयों की जो परतें खुद पर चढ़ाई है उन्हे धो सकते है।।
क्या हुआ ? कुछ समझ नहीं आ रहा क्या, कोई नहीं मैं अभी समझा देती हूं।
दरअसल, आजकल हर चीज़ में मिलावट हो गई है, यहां तक कि लोगो ने रिश्तों को भी नहीं छोड़ा। अब ये बात हम सब को पता है लेकिन हम इसे हज़म नहीं कर पाते,, हां भई, करे भी तो कैसे? रिश्ते तो सबको चाहिए अब कोई अकेले कैसे जी सकता है।।
बस, यही से शुरू होता वो दौर खुद को झूठी तसल्ली देने का, अगर किसी ने दिल दुखाया तो हम सेकंड नहीं लगते खुद को ये बात समझाने में कि...उसने जान बूझ कर नहीं किया।
कोई धोखा दे ...तो उसकी कोई मजबूरी रही होगी।
कोई फायदा उठाए... तो कोई नहीं अगली बार नहीं करेगा।
कोई बर्बाद करने पर भी उतारू हो.. तो कोई नहीं भगवान देख रहा है।
फिर जब कभी इन सब से थक कर, किसी अंधेरी रात में किसी कोने में खुद को अकेला पाते है तब समझ आता है इन गलतफहमियों के साथ से तो अकेला रहना ज्यादा अच्छा है। तब समझ आता है जब मन ऊपर तक भर जाए, और बहुत अकेला महसूस हो , तो वो खुद को दी गई झुठी तसल्ली भी कोई राहत नहीं पहुंचा सकती...उस रात को जो समझ आता है उसपर ज़रा ग़ौर फरमाए:-


ज़िन्दगी तेरे रंगों से रंगदारी ना हो पायी,
लम्हा लम्हा कोशिश की हमने, मगर यारी ना हो पायी,
गुनाह तो किए बहुत दूसरों को आबाद करने के,
मगर अफसोस की किसी भी गुनाह से गिरफ्तारी ना हो पायी,
खुशियां हमनें भी बेशुमार लुटाई सब पर,
पर गलती से भी वो खुशियां हमारी ना हो पायी,
लम्हा लम्हा कोशिश की हमने, मगर यारी ना हो पायी।।
इम्तेहान बहुत दिए हमने, मगर कभी वो सफलता हासिल ना हो पायी,
ज़िन्दगी के इन मुश्किल इम्तिहानों की हमसे कभी तैयारी ना हो पायी,
मौके बहुत दिए कुछ शातिर दिमाग़ लोगों ने, हमें पास कराने के,
लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी हमसे किसी की "जी- हुजूरी" ना हो पायी,
लम्हा लम्हा कोशिश की हमनें, मगर यारी ना हो पायी।।
अपने उसूलों पर जिए हम, इसलिए किसी से गद्दारी ना हो पायी,
लोगो की तरह "बाहर से कुछ अंदर से कुछ" जैसी अदाकारी ना हो पायी,
जानते हैं जनाब, बहुत मुफलिसी में गुजारे है दिन हमने,
मगर फिर भी गुलाबी नोटों के लिए हमसे, किसी की गुलामी ना हो पायी,
लम्हा लम्हा कोशिश की हमनें मगर यारी ना हो पायी।
एक बार टूट जाने के बाद वो सुनहरे सपनों की कड़ी हमसे ना जुड़ पायी,
ओंस की तरह गिर तो गए किसी के लिए, मगर फिर भी ये ज़िन्दगी चमकता मोती ना हो पायी,
हां कभी सूखे पत्तों की तरह ठंड मिटाने को किसी की , जला तो दिया खुद को,
लेकिन चाह कर भी किसी के दिए की बाती ना बन पायी,
लम्हा लम्हा कोशिश की हमनें मगर यारी ना हो पायी।।
दूसरों को मुस्कुराने की वजह देते देते, ये ज़िन्दगी कभी अपनी गिरेबान में ना झांक पायी,
उस चांद को पाने की चाह में ये आंखें ठीक से कभी सो ना पायी,
सोचा था कभी कि एक दिन अपने लिए भी सब सहेज लूंगी,
लेकिन आज ज़रा ठहरी हूं कुछ पल के लिए तो समझ आया कि अपने लिए तो मैं कभी कुछ कर ही नहीं पायी,
लम्हा लम्हा कोशिश की हमनें मगर यारी ना हो पायी।।


10 टिप्‍पणियां:

  1. लम्हा लम्हा कोशिश की हमनें मगर यारी ना हो पायी।।

    Awesome....Dil ki gehraiyo ko chu gya apka ye post

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  2. बहुत अच्छे.. बहुत बढ़िया..

    जवाब देंहटाएं

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