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सोमवार, 23 नवंबर 2020

बराबरी

हैलो फ्रेंड्स....पोस्ट पढ़ लो...
मेरी आज कि पोस्ट उस नाज़ुक समय के लिए है जब हम किसी की देखा देखी, किसी से होड़ में, या किसी के बहकावे में, या कभी अनजाने में ही आपने आप को खोने लगते है... वो बनने की कोशिश करने लगते है.. जो हम है ही नहीं, और ना कभी बन सकते है।। बिल्कुल वैसा बनना चाहते है जैसा वो सामने वाला शख्स आपको बनाना चाहता है...
क्योंकि उसे पता है की आप पूरी तरह उसकी गिरफ्त में है...उस वक्त वो जो चाहे आपसे करवा सकता है।।।
लेकिन हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि जीवन सिर्फ एक बार मिलता है, और भगवान जी ने हम सब को अलग अलग बनाया है।।
तो फिर हम क्यों इस कीमती जीवन को किसी के जैसा बनने की होड़ में खत्म किए जा रहे है....
आज मैं आपको एक कन्फेशन सुनना चाहूंगी जो हूबहू इन परिस्थितियों से दो चार होने के बाद निकल कर सामने आया है...तो ग़ौर फरमाएगा -:
हां, बहुत दूर निकल आई हूं मैं,
वो सब पीछे छोड़कर जिससे मुझे बहुत खुशी मिलती थी,
सिर्फ तुझसे बराबरी करने के लिए,
लेकिन बैठी हूं आज एक अरसे बाद तो समझ आया
की मेरी और तुम्हारी बराबरी तो मुमकिन ही नहीं,
क्योंकि तुम्हे तालीम उस्तादों से मिली है,
और मुझे सिखाया है मेरे हालातों ने,
तो खामख्वाह ही इतनी दूर निकल आई मैं।।
तुझे बारिश बहुत पसंद है,
फुहारों के साथ झूमते हुए देखा है मैने तुझे,
तेरी बराबरी के चक्कर में बहुत भीगी हूं आज मैं,
लेकिन फुहारों के थमने पर समझ आया,
की बारिश से गीली छत में,
और बारिश से टपकती छत में बहुत फर्क होता है,
फिर भी ना जाने क्यों इतना दूर निकल आई मैं।।
बाहर का खाना बहुत पसंद है तुझे,
बहुत बार बड़े चाव से खाते हुए देखा है तुझे,
तेरी बराबरी के चक्कर में आज पिज़्ज़ा के रेट पता कर आई मैं,
लेकिन जब खाने बैठी हूं तो समझ आया कि,
इस अध पके मैदे में,
और सिलवट पड़े मां के हाथ के खाने में बहुत फर्क होता है,
फिर भी ना जाने क्यों इतना दूर निकल आईं मैं।।
दिखावा बहुत पसंद है तुझे,
बहुत बार रंग बदलते हुए देखा है तुझे,
तेरी बराबरी के चक्कर में आजकल रंग बदलना सीख रही थी मैं,
लेकिन आज जब भरी भीड़ में खुद को अकेला पाया तो समझ आया कि,
किसी की ज़िन्दगी को रंगों से भरने में,
और वक्त आने पर रंग बदलने में बहुत फर्क होता है,
तो अब पछता रही हूं मैं की क्यों इतनी दूर निकल आई हूं मैं।।

अब दो शब्द उनके लिए जिनके वजह से हम, हम नहीं रहते...

हां, अब पछता रही हूं मैं,
लेकिन अब पछताने से क्या होता है,
अब मैं फिर से मैं हो जाऊंगी, सोच लिया ये आज मैने,
क्योंकि सुना है कहीं की हर अंधेरी रात के बाद सूरज फिर निकलता है,
तू खुश रह अपनी इस दिखावे की दुनिया में,
इस बराबरी में क्या रखा है,
इन सब के चक्कर में हम अपने आप को खो देते है,
और फिर हमारे अंदर कोई और ही इन्सान बसता है।।
चल अब हम दोनों देखते है , की तेरा दिखावे का जादू कब तक चलता है,
ये रंगों की पोटली सिर्फ तेरे पास ही नहीं,
ये दुनिया है नासमझ, यहां वक्त पड़ने पर हर शख्स अपना रंग बदलता है।।

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