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मंगलवार, 24 नवंबर 2020

Someone's Confession

हैलो फ्रेंड्स.... पोस्ट पढ़ लो
आज मैं आपके लिए किसी का confession ले कर आई हूं...और ये मैं इसलिए लेकर आई हूं ताकि आप अपने आप को इस बेवजह सी उदासी से बचा सको...इस अनमोल जीवन के हर पल को खुल कर जी सको...
कभी कभी यू ही बिना किसी वजह मन फिर u turn ले लेता है...
लौट जाना चाहता है फिर से वहां जहां वो पहले वाली बचपन वाली ज़िन्दगी बाहें फैलाए खड़ी है...
लौट जाना चाहता है फिर उन्हीं गलियों में जहां वो ice cream वाले बूढ़े अंकल दोपहर 2 बजे वाली स्कूल की घंटी के बजने के इंतज़ार में तैयार खड़े होते थे...
लौट जाना चाहता है उस तारों से भरे आसमान में जो इन आखों को ढेर सारे सपने दिखाने में माहिर होता था...
लौट जाना चाहता है उन दीवाली के दीयो के पास जिनसे जलने का तो डर था लेकिन उनकी वो जलती हुई जगमग लौ दिल को बहुत ठंडक पहुंचती थी...
लौट जाना चाहता है उस खेल के मैदान में जहां से चोट लगवा कर मां के पास आते थे और उनकी वो हल्की सी फूंक वो घाव भरने के लिए काफी थी।।

भाग तो आज भी रहे है वैसे ही जैसे उस खेल के मैदान में दूर तक भागते थे...लेकिन तब टाइम भी तय था और दूरी भी तय थी.... पता होता था कि इस मैदान से बाहर नहीं जाना,
पता होता था कि 6 बजे वापिस लौटना होगा घर..
लेकिन अब तो वापिस लौटने का ना तो कोई टाइम है..और ना कोई कारण ... इस भागम भाग में ना खाने की सुध है और ना पीने की... कुछ याद है तो सिर्फ इतना की भागना है....कभी रिश्तों के लिए..
कभी अपने लिए ...और कभी यूंही बेवजह।।

लेकिन कभी कभी इस भागम भाग के बीच कोई ठोकर यूंही लग जाती है....और कई बार ये अंदर तक चोट पहुंचती है...
फिर मन इस सफर से ऊबने लगता है....आगे ना जाकर वापिस लौटना चाहता है;
लेकिन भूल जाता है कमबख्त, वो ज़िन्दगी अब उस पते पर रहती ही नहीं, अब सब बदल गया है
वो बचपन वाली ज़िन्दगी बाहें फैलाए इसे नज़र तो आ रहीं है लेकिन असल में वो कहीं है ही नहीं...
वो ice Cream वाले बूढ़े अंकल भी बेबस से लाचार से है इस पल पल रंग बदलते समाज के आगे...
वो सपनों वाला आसमान उन ऊंची ऊंची इमारतों के आगे अपने घुटने टेक चुका है...अब वो दिखता ही नहीं,  कुछ दिखता है तो सिर्फ वो आलीशान से इमारतें...
वो दीवाली वाले दिए भले ही जलते होंगे आज भी लेकिन वो नन्हे हाथ अब उनसे डरते नहीं है...और ना उस ठंडक को महसूस करते है,
वो खेल का मैदान वो रहा ही नहीं... अब वो मल्टीप्लेक्स का गढ़ बन गया है... हां भीड़ तो आज भी बहुत होती है वहां आज भी... लेकिन वो मिट्टी में खेलने वाला बचपन नहीं होता।।।
लेकिन ये नहीं समझेगा...
बताया तो था मैने आपको की ये भी तो बच्चा ही है...
इसे भी सिर्फ वो चाहिए जो इसे अच्छा लगता है
और अच्छा ही है ना... बच्चा बने रहने दो इसे... एक बार बड़ा हो गया तो आए दिन नए नए समझौतों के बीच कहीं दब कर रह जाएगा...
"बच्चा है तो इसे बच्चा ही रहने दो जनाब,
सुना है ज़िम्मेदारी समझदार बना देती है,
बचपना है तो बचपना ही रहने दो ,
ये समझदारी वाली ज़िन्दगी बहुत भगाती है।।



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