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शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

पुराने पेपर

 हैलो फ्रेंड्स....शुभ संध्या...
किसी ने कहा... कि कुछ दिन कहीं भर घूम आओ..
मनाली...शिमला...जयपुर.... उदयपुर...और ना जाने कहां कहां...
बहुत बहलाया इस दिल को भी ... कि मान जाए...तरह तरह के प्रलोभन दिए...लेकिन सब सुनकर घूम फिरकर वापिस वहीं पहुंच जाता है...वहीं.... वहीं जहां ज़िन्दगी को जीने के लिए सिर्फ थोड़ा सा प्यार..थोड़ी सी परवाह...कुछ यादगार लम्हें और बहुत सारा अपनापन चाहिए होता है।।
वो शिमला की ठिठुरती वादियों में नहीं जाना चाहता...
उसे तो किसी ढलती शाम में किसी शांत जगह पर बैठकर उस डूबते हुए सूरज को देखना है...जो जाते जाते भी अनजाने में ये सीखा जाता है कि ...वो डूब रहा है ये ज़रूरी नहीं है...बल्कि कल वो फिर से बहुत सारी उम्मीदों ...और सपनों के साथ लौट आएगा ये ज़्यादा ज़रूरी है।।
इसी तरह हमारी ज़िन्दगी में भी बहुत सारे पल आते है जब हम डूब रहे होते है...लेकिन तब भी हमें ये याद रखना चाहिए कि कल हमें फिर से आना है चमकना है और छा जाना है।।
तो आए फिर और थोड़ा ग़ौर फरमाए:-
जो मैने किया ही नहीं,
फिर भी ना जाने क्यों उसका मलाल है,
अब तो पुराने पेपर भी जमा कर दिए मैने ऐ ज़िन्दगी,
और तुम्हें आज भी इतने सवाल है।।
उन लम्हों को मैने मुश्किल से काटा,
फिर क्यों उनको जी भर के जी लेने का मुझपर इल्जाम है,
उसके पास मुझसे ज्यादा क्यों है जनाब,
अफसोस, आज कल यही मसला सरे आम है।।
जो शिकायतें की नहीं उनसे, 
समझ लो उन पर सारी की सारी उधार है,
यूं जो खामोशियों का हाथ थाम लिया है,
तो फिर हैरानी क्यों जनाब, ये तो तुम्हारे चंद मुझपर किए गए अहसान है।।
उनकी खताओं का हिसाब हवा हो जाए,
फिर क्यों मेरी गलतियों पर बवाल है,
जल जल कर धुंआ है गई मोमबत्ती सी ये ज़िन्दगी,
यकीनन ये कुछ सुहावने झोंकों पर ऐतबार करने का परिणाम है।।
खुद को जो खूब झूठे दिलासे दिए,
फिर क्यों आज दिखावे से इंकार है,
सहमी हुई सी बेचारी मेरी ख्वाहिशें बैठी है आज एक कोने में,
पुचकार के कोई गले लगा ले, अब बस जेहन में यही अरमान है।।
अब तो पुराने पेपर भी जमा कर दिए मैने ऐ ज़िन्दगी,
और तुम्हें आज भी इतने सवाल है।।


मंगलवार, 26 जनवरी 2021

रिश्ते

हैलो फ्रेंड्स... गुड मॉ्निंग..
कैसे हो आप सब...आशा करती हूं कि इस magical सी ठंड में .. इतराती हुई...गुनगुनी धूप को एन्जॉय कर रहे होंगे...
सच कहूं जब जब ये गुनगुनी धूप आंगन में आकर विराजमान होती है तो वो बचपन वाली सर्दियों कि याद आ जाती है...
याद आता है कि कैसे मम्मी..चाची...और आंटी ऊपर छत पर बैठकर धूप सेकती थी और  हमारे लिए वो रंग-बिरंगी स्वेटर बुनती थी..कैसे नए नए डिजाइन ढूंढकर बहुत शिद्दत के साथ उस स्वेटर को पूरा करती थी..उसी दौरान आपस में बातचीत से वो कुछ घरेलू दिक्कतों को भी निपटारा बहुत सलीके से कर देती थी...एक दूसरे को सलाह भी देती थी...और साथ ही साथ कुछ घरेलू नुस्खे भी दे दिया करती थी।।
सच में कितना अपनापन लेकर आती थी वो बचपन वाली धूप...उस टाइम  सूरज के साथ साथ रिश्तों की गर्माहट को भी महसूस किया जा सकता था...लेकिन अफसोस की आज के टाइम में सबसे बड़ी चुनौती है रिश्तों को संभाल कर रखना... आज कल लोगो के पास टाइम ही नहीं की वो किसी का हाल चाल ही पूछ ले...
इसलिए आज इन्हीं खोए हुए रिश्तों के बारे में कुछ कहना है आपसे....तो चलिए ज़रा ग़ौर फरमाए:-
सख्त हाथों से भी छूट जाते है हाथ, रिश्ते ज़ोर से नहीं तमीज से थामे जाते है,
फल और फूल के आने से पहले, ये भी ठीक पौधों-से सींचे जाते है।।
कई बार ख़तरनाक मोड़ आते है रिश्तों मे भी, पर यूं बीच सफ़र में हाथ कहां छोड़े जाते है,
इस सफ़र को हर पल खुशनुमा बनाने के लिए, कई बार बिना ग़लती के भी हाथ जोड़े जाते है।।
छूट जाते है कुछ साथ इस सफर में, और कुछ इन्हें बड़ी शिद्दत से निभाते है,
बहुत नाज़ुक है इसलिए ही तो, ये भी फूलों से संभाले जाते है।। 

कुछ नए भी जुड़ जाते है इन रिश्तों की कड़ी में, जो पहले वालो से भी ज्यादा अजीज हो जाते है,
कभी जब अमावस्या-से काले साह अंधेरों में घिरे हो हम तो, यही कुछ रिश्ते हमारे लिए रोशनदान से छनकर आता हुआ उजाला बन जाते है।।

तो जनाब, ज़िन्दगी में जब सब कुछ लगा हो दांव पर , तो याद रखना की सबसे पहले रिश्ते बचाए जाते है,
इसलिए कहा गया है कि सख्त हाथों से भी छूट जाते है हाथ, रिश्ते ज़ोर से नहीं तमीज से थामे जाते है।।





 
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मंगलवार, 5 जनवरी 2021

तलाश

 हैलो फ्रेंड्स...कैसे है आप सब।।
आशा करती हूं आप सब अच्छे है और नए साल में नए plans बना रहे होंगे।।
Happy New year to you all.

दरअसल plans तो मैनें भी बनाए पिछले साल खूब...
बहुत सारी ख्वाहिशें भी रखी दिल में..
सपने भी देखे बहुत सारे....
लेकिन फिर महसूस किया ..
कि ज़िन्दगी में कुछ तलाश ऐसी भी होती हैं जो कभी ख़तम नहीं होती... जितना हम अंदर जाने की कोशिश करते है.. उतना फंसते जाते है।।
यकीन मानिए ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा किसी दलदल में फंसने जैसा।।
पर आप लोगो कि तरह मैने भी पिछले साल से बहुत कुछ सीखा है...अब खुद की तलाश में हूं ...आगे बढ़ना चाहती हूं उन ख्वाहिशों को पीछे छोड़कर जिनकी बातों में आकर मैने हासिल तो कुछ नहीं किया लेकिन खुद को सताया बहुत है।।


नहीं नहीं... आप गलत समझ रहे है.. मैं सपने देखने या ख्वाहिशों के खिलाफ नहीं हूं...बस आपको आगाह करना चाहती हूं कि इन के साथ आपको आंखें बन्द करके नहीं चलना बल्कि पूरे होश में चलना होगा ताकि ये आपके उपर हावी ना हो पाए।।
और वैसे भी आप लोगो ने सुना होगा कि अगर मन चाहा मिल जाए तो अच्छा..और अगर ना मिले तो और भी अच्छा...क्योंकि उसके पीछे भी कुछ अच्छा ही छिपा होता है।।
तो चलिए मेरे साथ आज उन ख्वाहिशों को अलविदा कह ही दे जो हम पर हावी हो कर हमसे वो सब करवा लेती है..जो करने की हिम्मत जुटाने में हमें काफी समय लग जाता है..

तंग आ चुकी हूं इन्हें सिर पर बैठाकर,
बहुत बड़ी गलती हो गई इन्हें अपना बनाकर,
सोचती हूं धीरे से धक्का दे दूं,
सारी ख्वाहिशों को आज छत पर बुलाकर।।

ये भी पा लूं मैं, हासिल ये भी हो जाए मुझे,
लगातार कोशिश की ये करवाने की, मुझे बहला फुसलाकर,
सुकून छीन गया मेरा, रातों की नींद भी चली गई,
अब पूछे इनसे कोई की क्या हासिल कर लिया इन्होंने मुझसे ये सब करवाकर।।
बहुत मजबूर किया इन्होंने मुझे, की बस इन पर ध्यान दूं, अपना सब कुछ भुलाकर,
एक अनचाही दौड़ में शामिल हो जाऊं, अपना सब गंवाकर,
इन्हें कौन समझाए ये की जिनके पास कुछ नहीं होता,
कोई झांकता तक नहीं हैं उनकी चौखट पर आकर।।
हां, मैने सब किया इनकी बातों में आकर,
अब तलाश है खुद की, खुद ही अपनी पहचान मिटाकर,
आंसू छुपाने की कोशिश की है मैने, अपने आप को बारिश में भिगोकर,
लेकिन अब सोचती हूं, धीरे से धक्का दे दूं,
सारी ख्वाहिशों को आज छत पर बुलाकर ।।

हैप्पी बर्थडे पापा

  पापा मेरी मां के अलावा वो पहले इंसान है, जिसने मुझे हमेशा महसूस कराया कि मैं कितनी ख़ास हूं । आपने मुझे हमेशा ऐसे रखा है, जैसे मैं कोई रा...