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बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

"मां मैं फिर"

 "मां" .... शब्द ही ऐसा है जिसको सुनकर ही बिल्कुल ऐसा महसूस होता है....जैसे जून कि तपती गरमी में नीम की ठंडी छांव मिल गई हो..
सच में मां वो महान शख्सियत है  जिसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता...
बहुत छोटी थी उस समय....लेकिन याद है सब कुछ..
बोलना नहीं आता था ठीक से ...किसी को समझा भी नहीं पाती थी कि क्या कहना है...लेकिन एक मां ही थी जो उस तुतलाहट को भी बहुत अच्छे से समझती थी।।
कई बार खाना खाते हुए अपने कपड़ों के साथ साथ उनके भी कपड़े गंदे कर देती थी...लेकिन कभी इस बात कि शिकायत नहीं की उन्होंने।।
जब भी चोट लगती थी सबसे पहले "मां" निकलता था मुंह से, वैसे ही आज भी जब भी कोई चोट लगती है चाहे वो मानसिक हो या शारीरिक तो भी सबसे पहले "मां" ही निकलता है मुंह से।। 
मां के लिए कहना शुरू किया तो पता नहीं m कहां तक चली जाऊंगी...
लेकिन थोड़े शब्दों में कुछ कहूंगी ज़रूर...




माँ मैं फिर

माँ मैं फिर उन्हीं दिनों को जीना चाहती हूँ, फिर से तुम्हारी प्यारी बच्ची बनकर,
माँ मैं फिर तुम्हारी गोदी में सोना चाहती हूँ, तुम्हारी लोरी सुनकर, 

माँ मैं फिर दुनिया की असलियत का सामना करना चाहती हूँ, तुम्हारे उसी साथ को पाकर,
माँ मैं फिर अपनी सारी चिंताएँ भूल जाना चाहती हूँ, तुम्हारी गोद में सिर रखकर, 

माँ मैं फिर अपनी भूख मिटाना चाहती हूँ, तुम्हारे हाथों की बनी वो दुनिया की सबसे अच्छी रोटी खाकर,
माँ मैं फिर चलना चाहती हूँ, तुम्हारी ऊँगली का सहारा लेकर, 

माँ मैं फिर जगना चाहती हूँ, तुम्हारे हाथों का वो स्पर्श अपने माथे पर लेकर,
माँ मैं फिर निर्भीक होना चाहती हूँ, तुमसे सीख लेकर,

माँ मैं फिर सुखी होना चाहती हूँ, तुम्हारी दुआएँ पाकर
माँ मैं फिर अपनी गलतियाँ सुधारना चाहती हूँ, तुम्हारी डांट खाकर,

माँ मैं फिर संवरना चाहती हूँ, तुम्हारा स्नेह पाकर
क्योंकि माँ मैंने तुम्हारे बिना खुद को अधूरा पाया है. मैंने तुम्हारी कमी महसूस की है!

आज भी कई बार डर जाती हूं तुम्हें अपने पास ना पाकर🤗🤗🤗🤗 ।।

3 टिप्‍पणियां:

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