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सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

थोड़ी सी बच गई हूं

हैलो फ्रेंड्स ... आज कुछ लाइन ...उन पलों को उन लम्हों को बताने के लिए ...जब हम कहीं अकेले तन्हा बैठे हो...और क्या खोया ? क्या पाया ? की कशमकश में उलझे हो।।
जब कभी अचानक से ख्याल आए की ऐसा क्या पाना है हमें जिसकी वजह से हम हर जाते हुए लम्हे के साथ अपने आप को थोड़ा थोड़ा खोते जा रहे है...
एक अंधी सी दौड़ में भागते जा रहे है....लेकिन भाग तो रहे है पर मंज़िल कहां है और कौन सी है ये किसी को नहीं पता...तो चलिए फिर थोड़ा ग़ौर फरमाए:-




कुछ टूट सी रही हूं इन दिनों, किसी झूठे वादे की तरह,
कुछ धुंधली सी भी पड़ गई हूं मैं, कुछ पुरानी यादों की तरह,
और अब तो मैं वैसे भी थोड़ी सी ही बची हूं, 
फ़रवरी की इन सुहानी सर्दियों की तरह।।

कुछ खोई सी हूं आज कल मैं, बिल्कुल अमावस्या के उस चांद की तरह,
कुछ उलझ सी गई हूं मैं, पुराने धागों की रील की तरह,
कुछ घबराई हुई सी हूं इन दिनों, बिल्कुल एक अकेले छोटे बच्चे की तरह,
और अब तो मैं वैसे भी थोड़ी सी ही बची हूं,
फ़रवरी की इन सुहानी सर्दियों की तरह।।

कुछ शांत सी हूं इन दिनों, किसी तालाब में ठहरे पानी की तरह,
कुछ उदास सी हूं इन दिनों, बड़ी मुश्किल से सांस लेते आजकल वाले रिश्तों की तरह,
और अब तो मैं वैसे भी थोड़ी सी ही बची हूं, 
फ़रवरी की इन सुहानी सर्दियों की तरह।।
कुछ बिखर सी गई हूं आज कल, खुले हुए चीनी के डिब्बे कि तरह,
थोड़ी थोड़ी धीरे धीरे खत्म हो रही हूं इन दिनों,
किसी धारावाहिक के आखिरी एपिसोड कि तरह,
और अब तो मैं वैसे भी थोड़ी सी ही बची हूं, फ़रवरी की इन सुहानी सर्दियों की तरह।।





6 टिप्‍पणियां:

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