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शनिवार, 10 अप्रैल 2021

रिश्ता बेटी और मां का..

 हैलो दोस्तों, कैसे है आप...आशा करती हूं की इस कोरोना काल में आप अपना और अपनो का ख्याल रख रहे होगें।।

दोस्तों जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर हमें ये अहसास हो ही जाता है की हमारे अपने, हमारे लिए कितनी जरूरी होते है...उनके बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं होता।।
और हमें हमारी पहचान करने वाली होती है हमारी मां....
वो कहते हैं ना की मां हर रिश्ता निभा सकती है..लेकिन मां वाला प्यारा रिश्ता कोई नहीं निभा सकता। उनकी जगह कोई ले ही नहीं सकता।।
तो आज मैं आप लोगो के लिए लाई हूं एक बेटी के कुछ एहसास जिसकी शादी हो गई है, और उसका घर भी बदल गया है...लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वो है उसका उसकी मां से रिश्ता...उनके बीच के अनकहे अल्फाज़...उनके बीच की वो गरमाइश जो कभी ठंडी नहीं पड़ सकती।।
तो आइए जुड़ जाए उन प्यारे एहसासों के साथ....

"वैसे तो हवा रोज ही चलती है लेकिन आज वो मेरी मां के घर की और से आ रही थी। महकती हुई सी वो बार बार मेरे बालों को ठीक वैसे ही सहला रही थी जैसे मां अपने हाथों से सहलाया करती थी। हर झोंके में उनका स्पर्श मुझे महसूस हो रहा था। कभी बहुत ज़ोर से और कभी धीरे से चल रही थी ठीक वैसे जैसे मां कभी गुस्से से और कभी प्यार से मुझे समझाती थी। हर एक झोंका खाली न आते हुए वो कढ़ाई में बनते पकौड़ों की खुशबू अपने साथ ला रहा था। बहुत सारी यादें लिए हर झोंके मुझे अपनी और खींच रहा था। इस हवा से बहुत पुराना सा रिश्ता है हमारा, शायद तब से जब मां मुझे सीने से लगाए लोरी सुनाकर सुलाया करती थी। वो धीरे धीरे मुझे थपथपाते हुए इस हवा के साथ साथ टहल रही होती है। और मैं भी सपनों की दुनिया में झांकते हुए नींद के आगोश में चली जाती थी। वो बचपन वाली नींद बहुत प्यारी और बेपरवाह होती थी और जब मां के सीने से चिपके होते थे तो लगता था मानो सारी दुनिया अपनी ही है। लेकिन जैसे जैसे बड़े होते गए समझ आने लगा की सारी दुनिया नही सिर्फ़ मां अपनी है। बहुत अच्छा लग रहा था सब कुछ बिल्कुल वैसा जैसा मां की गोदी में लगता था। लेकिन अचानक से ऐसा लगा जैसे मां की गोदी से किसी ने झटके से नीचे उतार दिया हो। ऐसा लगा जैसे किसी ने उस बेपरवाह सी नींद में आए हुए सपने को तोड़ दिया हो।इस बार झोंके ने जब आकर छुआ तो उसमे कुछ नमी सी थी, थोड़ा भीगा हुआ सा था वो। फिर मुझे भी एक पल नहीं लगा ये समझने में की इस हवा के झोंके ने मेरी मां को मेरी भी तो याद दिला दी होगी ना। जब उसे छुआ होगा तो उसे भी तो लगा होगा जैसें मैं बचपन की तरह दौड़ कर उसे लिपट गई हूं , मेरी शरारतें, मेरी अटखेलियां, वो सारी बातें, वो सारे पल याद आ गए होंगे जो हमने साथ बिताए है। आज मां से थोड़ी दूर हूं लेकिन हर पल, हर लम्हा उन्हें उन्हीं की तरह याद करती हूं।।
बस आज थोड़ा ज्यादा कर रही हूं, इन शादी की रस्मों ने मुझे उनसे दूर कर दिया हो, लेकिन वो हमारे रिश्ते में दूरियां कभी नहीं ला सकती। हम एक दूसरे से उन्हीं करीब रहेंगे। ऐसे ही एक दूसरे को महसूस भी करते रहेंगे, कभी हवा से, कभी बारिश से और कभी जून की तेज तपिश से, और कभी एक दूसरे को कस के गले लगा के।।
वो कहते है ना....
 " मां है तो जन्नत है अपने पास,
और मां नहीं तो जन्नत भी बेकार है अपने पास।।"

3 टिप्‍पणियां:

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