हैलो दोस्तों, कैसे है आप..
आज कुछ स्कूल के उन दोस्तों के नाम जिनके लिए "मै चाय जैसी थी..किसी को बहुत पसंद और किसी को बिल्कुल नापसंद"
दुनिया में हर तरह के लोग होते है...और हमें इनकी वैरायटी तब मिलना शुरू हो जब हम अपना पहला कदम स्कूल में रखते है। वहां हर तरह के बच्चे होते है... पहले पहले तो सब ठीक होता है लेकिन चीज़ें वहां से बदलना शुरू हो जाती है, जहा दूसरे बच्चों को आपके गुण और दोष पता लग जाते है।
फिर सिलसिला शुरू होता है पसंद और न पसंद का, अब इसमें एक आसान सा गणित है की जो बच्चा जैसा होगा उसको वैसे ही बच्चे पसंद आयेंगे।
हम इंसानों में एक बहुत बुरी आदत होती है.. की हम हर दूसरे इंसान से खुद की तुलना करने लगते हैं और फिर जिस सांचे में हम फिट नहीं बैठते उससे हम कटना शुरू हो जाते है मतलब उसे दूर होने लगते है। इसको हम ऐसे समझ सकते है...अब अगर कोई नया बच्चा क्लास में आए और वो इंटेलिजेंट हो तो पहले वाले पढ़ाकू बच्चे उससे चिड़ने लगते है क्योंकि उन्हें ऐसा लगने लगता है की अब उनकी सत्ता छिन जाएगी। फिर वो बच्चे अपने मन की भड़ास निकालने के लिए उस नए बच्चे को बहुत सारे नाम दे देते है, जैसे:- घमड़ी, सडू, अकंडू, अड़ियल, सेलफिश और न जाने क्या क्या...?
हालांकि इससे कोई ख़ास फ़र्क नही पड़ता लेकिन उन बच्चो को आत्मसंतुष्टि हो जाती है। लेकिन वो जो नया बच्चा है उसके लिए ये थोड़ा अजीब होता है... बहुत असहज महसूस होता है लेकिन थोड़े टाइम बाद आदत पड़ जाती है, या यूं कह लो की वो अपने आपको उस माहौल में ढाल लेता है।
ये सब मेरा व्यक्तिगत अनुभव है... ऐसा मेरे साथ अक्सर हुआ है, हालांकि मैं भी जानती क्यों...क्योंकि मैं तो इंटेलिजेंट भी नहीं थी.. लेकिन आज कुछ उन सब लोगो के लिए जो मुझे ऐसा समझते थे लेकिन "I was not like that" तो गौर फरमाइए:
"दिल की बुरी नहीं हूं बस लफ्जों में थोड़ी शरारत लिए फिरती हूं,
भावुक भी हूं थोड़ी मैं, और बहुत ज्यादा ज़िद्दी हूं,
कभी खिलखिलाकर मुस्कुराती हूं, तो कभी बिना बात के ही रो देती हूं,
मैं खुद को खुद मैं खोकर अपनी तलाशी किया करती हूं,
दिखावे वाली इस दुनिया में थोड़ी सादी सी और सिंपल हूं,
हां पर किसी की खुशी के लिए कभी कभी एक छोटी बिंदी लगाया करती हूं,
कभी कभी पलकों को झुकाएं, मैं थोड़ा सा शर्माती हूं,
पायल की इस झंकार से मैं अपने गीत मिलाया करती हूं,
हां लेकिन दिल की बुरी नहीं हूं बस लफ्जों में थोड़ी शरारत लिए फिरती हूं।
सुहानी सी काली रातों में मैं सपनों को अपने बुनती हूं,
कभी कभी फिर सपनों में मैं पंख लगाए उड़ती हूं,
कभी जो मिल जाए मनपसंद सी चीज़ कोई,
तो फिर मैं बच्चो सी उछलती हूं,
जिंदगी की रंगीन शाम में फिर मैं जुगनू सी चमकती हूं,
कर पाऊं अगर किसी के लिए कुछ मैं,
तो फिर सर्दियों वाली सुनहरी धूप सी मैं खिलती हूं,
जिंदगी की इस कश्ती में मैं फिर डूबकर भी तैर जाती हूं,
कभी खुद को देखूं आईने में कभी मैं, तो कभी मेहंदी वाले हाथ से आखें ढकती हूं,
कभी कभी फिर मैं अपने लिए थोड़ा सजती और संवरती हूं,
हां लेकिन, दिल की बुरी नहीं हूं बस लफ्जों में थोड़ी शरारत लिए फिरती हूं।।
बच्ची हूं आज भी थोड़ी मैं, पर थोड़ी समझदारी भी लिए फिरती हूं,
रिश्तों की उस मजबूत डोर को आज भी मैं कस के पकड़ती हूं,
आज भी कभी कभी मैं अंधेरों से डरती हूं,
पूरे करने है जो सपने , उनकी मैं लंबी लिस्ट बनाए फिरती हूं,
आज भी उस तारों के शहर की चाहत लिए मैं, रातों को भी जगती हूं,
हां लेकिन दिल की बुरी नहीं हूं बस लफ्जों में थोड़ी शरारत लिए फिरती हूं।।
Bahot... Khub... Keep going ... Gob bless you
जवाब देंहटाएंThankyou ji
हटाएंAgr koi mera school friend isko padh rha hai to plzzz aage bhi share kre shayad un tk bhi chla jaye jinhone mujhe itne saare naam o se nvaja tha....but I want thankyou all ....miss you all....
जवाब देंहटाएं-ve baten bhul ja, abb kya hi fark padta h ....
जवाब देंहटाएंBaki likha bht sahi h... Gud going..beta
जवाब देंहटाएंJab log tumhaari brabari na kr paye to wo naam hi nikalte h 🤗
जवाब देंहटाएं🙏🏻 Good 👌🏻👌🏻
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