लेकिन उस गुढ़े गुड़ियों से खेलने की उम्र में हम वो सब मान लेते है क्योंकि हमें जो सिखाया जाता है उसकी के इर्द गिर्द हम अपनी दुनिया बसा लेते है।
वो दौर बहुत खूबसूरत होता है क्योंकि जब हम एक तरह से "ट्रेनिंग पीरियड" में होते है।
लेकिन जब ये ट्रेनिंग पीरियड खत्म होता है... तब इस दुनिया का असली चेहरा धीरे धीरे हमें समझ आने लगता है...
और तब वो सिलसिला शुरू होता है जब हमें अपनों की बताई हुई, सिखाई गई बातों में और दुनिया की हकीक़त में सामंजय बैठान होता है... जो कहीं किसी मोड़ पर जाकर हमें परेशान करने के अलावा कुछ नहीं देता...
तो चलिए देखे कि उस वक्त क्या होता है जब एक छोटी बच्ची को दुनिया की रास लीला समझ आने लगती है:-
मां तुम अक्सर मुझे समझाया करती थी,
की बुरे लोगो के साथ सिर्फ बुरा होता है,
लेकिन तुमने ये कभी नहीं बताया कि अब ज़माना बदल गया है, और जमाने के कुछ नियम भी,
अब सिर्फ और सिर्फ "अच्छे लोगो" के साथ बुरा होता है।।
वो पड़ोस की आंटियों अक्सर मुझसे कहती थी, कि बहुत सुंदर हो तुम, तुम्हें किसी और चीज़ की जरूरत नहीं पड़ेगी,
लेकिन उन्होंने भी सच छुपाया मुझसे, कभी ये कहा ही नहीं,
कि ये दुनियां बहुत मतलबी है, और आगे भी ये सिर्फ मतलब से ही चलेगी।।
पापा मुझे अक्सर बताते थे कि वो ऊपर बैठा नीली छतरी वाला सब देखता है,
वो किसी के साथ कुछ भी गलत नहीं होने देता,
लेकिन मां अब शायद उस नीली छतरी वाले का ट्रांसफर हो गया है,
क्योंकि जो अब वह बैठा है वो तो सिर्फ धोखेबाजों का साथ देता है।।
मां तुम अक्सर मुझसे कहा करती थी, कि हर सिक्के का दूसरा पहलू ज़रूर होता है, और हमें वो दूसरा पहलू भी देखना ज़रूरी होता है,
लेकिन मां तुम समझती नहीं हो, ये इंटरनेट का ज़माना है,
यहां वो दूसरा पहलू छोड़, इस सिक्के पर भी किसी की नज़र पड़ जाए इतना ही काफ़ी होता है।।
तुम समझाती थी मुझे अक्सर कि जिंदगी को हमेशा आगे का सोचकर जीना होता है,
लेकिन मां क्या तुम्हें नहीं लगा कभी कि आज अभी बस इस पल को जी लेना काफ़ी होगा,
क्योंकि अक्सर मैंने लोगो को कहते सुना हैं कि "कल" का दूसरा नाम "संदेह" होता है।।
.
.
.
.
.
कुछ और हकीकतों के साथ आगे भी जारी रहेगा।।
Very nice 👌
जवाब देंहटाएं