आज की सुबह थी तो वैसी ही जैसी रोज होती हैं .... वैसे तो सुबह 5:30 बजे से रात 11:30 बजे तक थकना मुझे allowed नही हैं ...लेकिन आज मेरे मन ने मुझे सुबह 8 बजे ही थका दिया.... सुबह उठते ही मेरा मन मेरी मम्मी के घर की और भागा... जहां मैं अपने मन की मालिक थीं..बहुत मुशकिल से समझाया की अब ऐसा नही हैं ...फिर रसोई मे जाते ही फिर से भाग गया मम्मी के घर और मुझे याद दिलाने लगा वो मम्मी के हाथ की गरम गरम रोटी....वो उनका खाना खिलने के लिए मेरे पिछे पिछे भागना ....मेरे ऑफिस से घर आने तक मेरा wait करना ...मेरे घर आते ही ""आ गया मेरा बच्चा""कहकर बुलाना...मेरे बिना कहें सब समझ जाना ...मेरी फिजूल की बातों को भी ध्यान से सुनना...खुद को सर्दी लगती तो मुझे भी स्वेटर पहना देती...मेरे सिर्फ इतना कहने पर कि सिर दर्द है , उनका रात भर जागना --इतना कुछ याद दिलाने के बाद भी वो नही माना ...बहुत मुशकिल से उसे समझाया की वो इस वक़्त एक रेगिस्तान मे खडा हैं जहा उसे दूर कही पानी तो नजर आता हैं...लेकिन पास जाने पर वो ओर दूर हो जाता हैं।
एक बच्चे की तरह लाख ज़िद करने लगा वापिस नहीं जाना...आज तो समझना भी मुश्किल था ...लेकिन जब मैने उसे उसकी ज़िम्मेदारियों की list दी...तब बहुत दुखी मन से वो वापिस आया ...और तब तक 8बज गए थे ..फिर office जाने के लिए भी उसे वैसे ही तैयार किया जैसे किसी बच्चे को तैयार करते हैं ..जब वो अपनी माँ को छोड़कर स्कूल नहीं जाना चाहता ।।
बस ऐसे ही दिन में कई बार मेरा मन मम्मी के पास घूम आता है...
काश मैं भी जा पाती ....ऐसे ही ....
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